मुस्लिम महिलाओं के खतना पर रोक के लिए सर्वोच्च अदालत कर रहा है विचार

इस्लाम को मानने वाले दाऊदी-बोहरा समुदाय का एक समूह महिला खतना के समर्थन में खुल कर सामने आ गया है। समूह के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अदालतें सदियों पुरानी महिला खतना की धार्मिक परंपरा पर कोई विचार नहीं करें और इससे जुड़े जनहित याचिकाओं को खारिज कर दे। दाऊदी-बोहरा समूह ने कहा कि दाऊदी-बोहरा समुदाय सहित इस्लाम के कुछ पंथों में महिला खतना की परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसकी वैधता की अगर जांच की जानी है तो बड़ी संविधान पीठ द्वारा ऐसा किया जाए।

जनहित याचिका पर हो पुर्नविचार

दाऊदी- बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के खतना की परंपरा को चुनौती देने के लिए दिल्ली के एक वकील की जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही है। मुस्लिम समुदाय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जनहित याचिका के माध्यम से क्षेत्राधिकार के जरिए किसी धार्मिक परंपरा की वैधता की जांच नहीं की जा सकती है।

खतना का किया समर्थन

वकील सिंघवी ने पीठ से कहा कि मुस्लिम महिलाओं का खतना और मुस्लिम पुरुषों का खतना इस्लाम में एक धार्मिक परंपरा है और इसका संबंध शरीर की शुद्धता से है। बतातें चलें कि मुस्लिम समुदाय में बाल्यावस्था में बालक के मूत्रनली के अग्रभाग को काट देने की परंपरा रही है। मुस्लिम समुदाय इसको खतना के नाम से जानतें हैं। किंतु, दाऊदी- बोहरा मुस्लिम समुदाय में बालिकाओं की योनी के कुछ अंगों को भी काटने यानी खतना करने की चली आ रही अमानवीय परंपरा पर रोक लगाने की अब मांग उठने लगी है। बहरहाल, इस मामले में आगली सुनवाई अब 30 अगस्त को होनी है।

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