Site icon

आधुनिक समाज में सहिष्णुता का आभाव 

राजकिशोर प्रसाद
आज  हमारा समाज आधुनिक और पश्चात् संस्कृति के चकाचौध से ओत प्रोत है। हम अपनी विरासत में मिले सामाजिक परम्परा, रीति रिवाज, संस्कृति, शिष्टाचार आदि को भूलते जा रहे  है।  दिखावटी व बनावटी सिस्टम के मकड़जाल में फसते जा रहे। यही वजह है कि हमारी नई पीढ़ी हमारे पूर्वजो से मिली संस्कृति व परम्परा को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ है। जिससे आज हमारे समाज में नई पीढ़ी के लोग शिष्टाचार का भी ख्याल नही रखते।
आज के स्कूली शिक्षा भी उन संस्कृति के अनुकूल नही दिख पड़ती। आज से करीब एक दशक पूर्व हमारे समाज में एक परम्परा था, सिस्टम था, जिसका अक्षरशः पालन होता था। छोटे बड़ो का आदर करते थे। सामाजिक बन्धन होता था जो कानून की भाँति काम करता था। गलती या नियम विरुद्ध करने पर पंचायत होती थी। पंच को पेमेश्वर की संज्ञा दी जाती थी। पंच के फैसले सभी को मान्य होते थे। जुर्माने की राशि से सामाजिक सरोकार की वस्तुये खरीदी जाती थी। समाज से हर वर्ग के अलग अलग मांजन होते थे। जुर्माने की राशि अदा न करने पर शादी ब्याह, सुख श्राद्ध आदि प्रयोजनों पर भोज से वंचित किया जाता था। लोग इसे एक शिष्टाचार में निभाते थे।
किन्तु नये परिवेश में सब बदल गया। समय के साथ इसमें भी खामिया आने लगी। कुछ इसके दुरूपयोग करने लगे। फलतः हमारी ये परम्पराये विलुप्त होती चली गई। बच्चे पुराणी रीती रिवाज को भूल गये। समाज में शिष्टाचार संस्कृति आज सिमटती जा रही है। जिससे समाज में सहिष्णुता का आभाव होता जा रहा है। हालांकि अभी भी कुछ परिवारो में पुराणी संस्कृति, संस्कार, शिष्टाचार आज भी कायम है। जरूरत है इस आधुनिक तकनीकी विकास के दौर में     विकास के साथ साथ  हम अपनी संस्कृति, संस्कार व शिष्टाचार को को भी अक्षुण्ण रख सके।

KKN लाइव WhatsApp पर भी उपलब्ध है, खबरों की खबर के लिए यहां क्लिक करके आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं।

Exit mobile version