कुपोषण के कारण देश में करीब 38 फीसदी बच्चों का कद नहीं बढ़ पा रहा है। इनमें से भी करीब 21 फीसदी बच्चों में यह समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रलय की एक रिपोर्ट ‘नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-4’ में यह तथ्य सामने आया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण की समस्या इतनी गंभीर है कि वह भावी नस्ल को प्रभावित कर सकती है।
यह सर्वेक्षण 2015-16 के दौरान देश भर में हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार पांच साल की उम्र के 38.5 फीसदी बच्चों की लंबाई उम्र के हिसाब से कम थी। छोटे कद वाले बच्चों की संख्या शहरों में 31 फीसदी और गांवों में 41 फीसदी है। इसके मद्देनजर एक अलग श्रेणी बनाई गई, जिसमें कद छोटा होने से अत्यधिक प्रभावित बच्चों को रखा गया है। ऐसे बच्चों की संख्या 21 फीसदी है। ऐसे बच्चों का गांवों एवं शहरों में प्रतिशत करीब-करीब एक जैसा ही है।
चिकित्सकीय मानकों के अनुरूप पांच साल के बच्चे का कद 40 इंच होना चाहिए। उम्र के हिसाब से कितना कद होना चाहिए इसके लिए डब्ल्यूएचओ की तरफ से चार्ट उपलब्ध है, जिसके आधार पर आकलन किया जाता है।
स्वास्थ्य मंत्रलय में उप आयुक्त के अनुसार बचपन में यदि कद छोटा रहता है और आगे भी उनकी सेहत नहीं सुधरती है। ऐसे बच्चों के जब बच्चे होंगे तो आनुवांशिक प्रभाव से उनका कद भी छोटा हो सकता है। जापान एवं चीन के बच्चों के कद में सुधार हो रहा है। वहां छोटे कद के बच्चों की संख्या तीन-चार फीसदी के बीच होती है। पोषण अच्छा होने से इनकी नस्लें सुधर रही हैं।
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