मध्य प्रदेश। प्रदेश के हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा कि रेप पीड़िता को प्रसव के लिए बाध्य नही किया जा सकता है। कोर्ट का यह महत्वपूर्ण आदेश एक नाबालिग रेप पीड़िता के पिता की याचिका पर सुनवाई के बाद आया है।
दरअसल, खंडवा की एक नाबालिग रेप पीड़िता के किसान पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया है। रेप पीड़िता के पिता ने ये मांग की थी कि उसकी नाबालिग बेटी रेप का शिकार हुई है और अब वह 16 हफ्ते का गर्भवति भी है। पिता ने अर्जी लगाई थी कि उसने बच्ची को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से बचने हेतु प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने का आदेश दिया जाए।
इससे पहले खंडवा के जिला स्तर पर सभी अधिकारियों को आवेदन देने के बावजूद जब पिता की कही से न्याय नही मिला तब उन्होंने हाईकोर्ट में अर्जी लगा कर न्याय की गुहार की थी। याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से ये पक्ष रखा गया कि इंडियन मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी एक्ट 1973 के सेशन 3 सब क्लॉज 2 के तहत ये कहा गया है कि अगर गर्भ मे पल रहा भ्रूण 12 से 20 हफ्ते का है तो दो मेडिकल प्रेक्टिशनर्स की सलाह पर प्रेग्नेंसी टर्मिनेट की जा सकती है।
इसके अलावा ये तर्क भी रखा गया कि पूर्व में नाबालिगों के गर्भपात पर आईपीसी की धारा 312 के तहत ऐसा करना दंडनीय अपराध था जिसमें अब बदलाव किया गया है। इस महत्वपूर्ण याचिका से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने अपना आदेश दे दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि पीड़िता की जांच के लिए 24 घंटे के भीतर चिकित्सकों की कमेटी बनाई जाए। मामले में जांच कर तत्काल अग्रिम कार्यवाही की जाए। मामले की प्रमुख सचिव स्वास्थ्य और महिला बाल विकास व्यक्तिगत रूप से निगरानी करे और यदि नाबालिग रेप पीड़िता का गर्भपात कराया जाता है तो उसके भ्रूण का डीएनए सैम्पल जब्त कर सुरक्षित रखा जाए।
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