भीड़ में जाने से बचना बहुत जरुरी
KKN न्यूज ब्यूरो। देखा जा रहा है कि शहर की तुलना में गांव के लोग, इन दिनो अधिक बहादुरी दिखाने में जुट गये हैं। हाथ साफ करने वालों को डरपोक समझा जाता है। हाट, बजार और चाय- नाश्ते की दुकान पर एक साथ बैठे कई लोग, कोरोना पर प्रवचन देते अक्सर मिल जायेंगे। ताज्जुब तो तब हुई, जब सैकड़ो लोगो को एक साथ बैठा कर नेताजी सोशल डिस्टेंश मेंटेन करने का प्रवचन देने लगे। यानी, लोग मानते है कि खतरा है। एक दुसरे को बचने का उपाय भी बता रहें है। पर, खुद को सुरक्षित मान कर, भीड़ में जाने से इन्हें कोई गुरेज नहीं है।
Article Contents
अफवाह से बचें

चौक चौराहे की दुकान में लगी बेंच पर एक साथ बैठे कई लोग चाय की चुश्की के साथ ज्ञान और विज्ञान पर जोरदार प्रवचन देते अक्सर मिल जायेंगे। अपनी धारदार थ्योरी से पीएम और सीएम तक को पलभर में कटघरे तक पहुंचा रहें हैं। इश्वर, अल्लाह… मंदिर और मस्जिद… यहां तक की मीडिया भी इनके निशाने पर होता है। कोरोना के वाहक ये हो या नहीं हो… पर, अफवाह के इन वाहको पर रोक लगना बहुत जरुरी हो गया है। कुतर्क ऐसा कि हकीकत भी शर्मसार हो जाये। सवाल उठता है कि ऐसे लोगो को कौन समझाए?
घर लौटने वालों की स्क्रिंनिंग जरुरी
बात यहीं खत्म नहीं होती है। चीन, अमेरिका और इटली आदि देशो से घर लौटने वालों की एयरपोर्ट पर ही थर्मोस्क्रिनिंग हो रही है। अलबत्ता कुछ लोग इससे बच कर निकल भी रहें हैं। बावजूद इसके सभी कुछ ठीक रहने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग 14 रोज तक उनपर नजर रखती है। जरुरी नहीं कि कोरोना हो ही… पर, बताया जा रहा है कि ऐतिहात जरुरी है। ऐसे में बड़ा सवाल ये कि महाराष्ट्र और दिल्ली से बड़ी संख्या में बिहार लौट रहे लोगो के लिए स्थानीय प्रशासन कितना तैयार है? गौर करने वाली बात ये है कि इनमें से अधिकांश लोग गांव से जुड़ें हैं। जिनका सरकार के पास कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।
काम आ सकता है डेटा
विदेश से लौट रहे लोगो का पूरा डेटा सरकार के पास उपलब्ध होता है। उसका नाम और पता मालुम होता है। लिहाजा, यदि कोई जांच में छूट गया, तो उसकी तलाश कर लेना मुश्किल नहीं है। किंतु, महाराष्ट्र से लौटने वाले ज्यादेतर मजदूर है और ग्रामीण इलाको से है। इनका कोई डेटा भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे लोग रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से एक बार बाहर निकल गए, तो मालुम करना मुश्किल हो जायेगा कि ये कहां गए? यदि इनमें से कोई एक भी कोरोना पॉजिटिव हुआ, तो गांव के हालात को सम्भाल पाना बेहद मुश्किल हो जायेगा।
कोरंटाइन का हो सख्ती से पालन
यदि बाहर से लौटने वाले खुद को अपने ही घर में 14 रोज के लिए कोरंटाइन करें। यानी, सभी से खुद को अलग रखे। तब भी खतरा कम नहीं होगा। क्योंकि, गांव की हकीकत ये है कि पक्का मकान वाले घरो में भी दो या तीन कमरे में कई लोगो के एक साथ रहतें है। पूरा परिवार एक ही शौचालय और चापाकल का इस्तेमाल करता है। जाहिर है कि गांव में किसी को उसके खुद के परिवार के संपर्क में आने से नहीं रोका जा सकता है। ऐसे में परिवार के दूसरे लोग गांव के अन्य लोगो के संपर्क में आयेंगे, तो क्या होगा? जाहिर है कि आपकी सभी तैयारी धरी की धरी रह जायेगी। स्थिति बेकाबू हुई, तो शहर की तुलना में गांव को सम्भाल पाना मुश्किल हो जायेगा।
जागरुकता अभियान

खतरा बड़ा है… तैयारी समझदारी के साथ करनी होगी। विधिक जागरुकता प्राधिकार के लोग गांववालों को इसके लिए तैयार करने में जुट गए हैं। प्रचार वाहनो को गांव में भेजा जाने लगा है। स्वास्थ्यकर्मी लोगो को सुरक्षा के उपाये बता रहें हैं। मीनापुर के समाजिक कार्यकर्ता मो. सदरुल खां जैसे दर्जनो लोग घर-घर जा कर लोगो को समझा रहें हैं। आईडीएफ के लोग भी खुद को खतरे में डाल कर लोगो को जागरुक करने के लिए गांव में निकल पड़े हैं।
मिल कर लड़ना होगा
पीएम ने आह्वान किया है कि रविवार को अपने घरो से नहीं निकलें। ऐसे में बहादुर बनने से अच्छा है, समझदार बनें। खुद के ज्ञान पर स्वांग भरने से बेहतर होगा कि एक्सपर्ट जो कहता है, उसका पालन करें। लापरवाही का अंजाम, चीन में देख चुकें हैं। इटली में देख रहें है। कोरोना के सामने सुपरपावर अमेरिका कुछ नहीं कर पा रहा है। यदि भारत में कोरोना ने विराट रुप धारण किया, तो क्या होगा? ऐसे में जरुरी हो गया है कि सभी मतभेद को भुला कर इसके खिलाफ एकजुट हो जाएं। सोशल डिस्टेंश और हाथो की सफाई जैसे मामुली सर्तकता के साथ हम मिल कर कोरोना को हरा सकतें हैं और उम्मीद है कि इस वक्त हमारी चट्टानी एकता… कोरोना पर भारी पड़ेगा।
Discover more from
Subscribe to get the latest posts sent to your email.