प्रजातंत्र में शासन सत्ता को प्राप्त करने के लिए व्यवस्था पर चोट करने की परंपरा रही है। कालांतर में यही परंपराएं तनाव की वजह बनी और समाजिक तानाबाना की खाई चौड़ी होती चली गई। राजनीतिक नफा नुकसान की गणित में उलझे हमारे सियासतदान इस कदर मदहोश हो गए कि उन्हें भविष्य का खतरा कभी दिखाई नहीं पड़ा। नि:संदेह क्षणिक काल के लिए इसका लाभ मिला। पर, वह समाजिक समीकरण को चीर लम्बित नुकसान पहुंचा गये। जहां भी ऐसा हुआ वहां की समाज को इसकी खामियाजा भी भुगतनना पड़ा है। जाने अनजाने में हम भारतवंशी भी इसी खतरे के मुहाने पर आकर खड़ें हो गएं है। क्योंकि, चोट खाकर जख्मी हुई व्यवस्था कालांतर में खुद को कमजोर और असहाय बना लेती है। यहीं से जन्म होता है तानाशाही व्यवस्था की। इसका दुष्परिणाम लम्बे कालखंड को कैसे प्रभावित करता है? देखिए, इस रिपोर्ट में…
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