राइट टू प्राइवेसी, बना मौलिक अधिकार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसला में आज राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार मानते हुए अपना फैसला सुना दिया है। मुख्य न्यायाधीश जे एस केहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आता है। संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व के फैसले को भी पलट दिया। इन दोनों मामलों में शीर्ष अदालत ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से बाहर रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि राइट टू प्राइवेसी जीवन के अधिकार के लिए जरूरी है और यह अनुच्छेद 21, भाग 3 का हिस्सा है। फैसले में कहा गया है कि अनुच्छेद 21, जिसमें अब राइट टू प्राइवेसी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। ये कहता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, कोई व्यक्ति अपने जीवन या निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।
इस फैसले का ये होगा असर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विवाह, लिंग, परिवार के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां देने के लिए आप बाध्य नहीं होंगे। निजी विवरण जैसे कि क्रेडिट कार्ड, सोशल नेटवर्क प्लेटफार्मों, आईटी संबंधित जानकारियां भी अब हर जगह शेयर करने की बाध्यता नहीं होगी। कोर्ट के फैसले के बाद आपकी सभी जानकारियां अब संरक्षित हैं। इतना ही नहीं सभी सार्वजनिक जानकारियां, जहां आपकी गोपनीयता सुरक्षा के लिए न्यूनतम नियमों की आवश्यकता होती है, वो भी संरक्षित हैं। अब, राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 से जुड़ गया गया है।
Discover more from
Subscribe to get the latest posts sent to your email.