पर्सनल लॉ बराबरी में बाधक तो नही

राज किशोर प्रसाद
हक की लड़ाई में मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह मोर्चा खोला है। वह काबिले तारीफ है। इसमें सरकार की साथ मिलने से उनके हौसले और उम्मीदें बढ़ी है। तीन तलाक के खिलाफ जिस तरह से मुस्लिम महिलाओं ने हिम्मत कर लड़ाई को आगे बढ़ी है। अब वह दिन दूर नही लग रहा मंजिल पाने में । उसके हक की लड़ाई में सरकार का साथ भी मिला है। अब अवधारणा में बदलाव के साथ महिलाओं के कल्याण के साथ उसके वाजिव हक दिलाने में नई राष्ट्रीय महिला नीति साथ  होगी। अधिकार की यह लड़ाई न्यायलय पर टिकी है। पर्सनल लॉ घर से बाहर तक महिलाओ को बराबरी का हक देने में अपनी मजहब के आड़ में महिलाओ को शोषण कर रही है। समाज में बराबरी के लिये इस पर्सनल लॉ को छोड़ना होगा। मन्दिर मस्जिद मजारो के दरवाजे खोलने होंगे। इसके लिये समाज और समुदाय से टक्कर लेनी होगी। नई राष्ट्रीय महिला नीति के लिए महिलाओ को बराबरी का हक दिलाने में बड़ी चुनौती है। हालांकि केंद्र सरकार ने एक बार में तिन तलाक  को  महिला विरोधी बता कर सभी के लिये एकल  कानून की वकालत करते हुये समान नागरिक संहिता का मुद्दा विधि आयोग को  भेज कर इस ओर बड़ा कदम उठाया है। तीन तलाक के साथ साथ अपने शारीरिक बदलाव और एक निश्चित आयु काल में भी महिलाओ को भेदभाव झेलनी पड़ती है। इस भेदभाव को धार्मिक व मजहम रिति रिवाज  से जोड़कर कबतक  जारी रखा जायेगा। इसके लिये महिलाओ के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पोषण व आर्थिक सपन्नता के लिए निर्णय लेने के क्षमता को विकसित करनी होगी। राजनीती भागदारी बढ़ानी होगी और प्रशिक्षित करनी होगी।

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