KKN गुरुग्राम डेस्क | बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST एक्ट) के तहत दर्ज एक मामले को खारिज कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अपराध सार्वजनिक दृश्य (Public View) में नहीं हुआ, जो इस कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता।
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इस फैसले ने जाति-आधारित अपराधों की कानूनी व्याख्या को स्पष्ट किया है, खासतौर पर SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) से जुड़े मामलों में, जिनमें जातिसूचक गालियों और धमकियों को अपराध माना जाता है, लेकिन इसे साबित करने के लिए पब्लिक व्यू में घटित होना आवश्यक है।
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा पहले दिए गए फैसलों के अनुरूप है, जिनमें SC/ST एक्ट के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए सार्वजनिक स्थान पर तीसरे पक्ष की मौजूदगी को अनिवार्य बताया गया था।
SC/ST एक्ट: कानूनी ढांचा और मुख्य प्रावधान
SC/ST एक्ट, 1989 को जातिगत भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा को रोकने के लिए लागू किया गया था। यह कानून जाति-आधारित दुर्व्यवहार, धमकी और शारीरिक हिंसा के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करता है।
📌 मामले में प्रासंगिक धाराएं:
🔹 धारा 3(1)(r) SC/ST एक्ट: यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्य का अपमान करता है या उसे डराने-धमकाने का प्रयास करता है, और यह घटना सार्वजनिक दृश्य (Public View) में होती है, तो इसे अपराध माना जाएगा।
🔹 धारा 3(1)(s) SC/ST एक्ट: यदि कोई व्यक्ति किसी SC/ST समुदाय के सदस्य को जातिसूचक शब्दों से अपमानित करता है, और यह पब्लिक व्यू में होता है, तो इसे अपराध माना जाएगा।
इन धाराओं के तहत अपराध साबित करने के लिए यह आवश्यक है कि घटना किसी सार्वजनिक स्थल पर हुई हो और इसे किसी तीसरे व्यक्ति ने देखा हो।
मामले का संक्षिप्त विवरण: अफशमस्कर लाइखान पठान बनाम महाराष्ट्र राज्य
इस मामले में शिकायतकर्ता का आरोप था कि वह एक व्यक्ति के साथ रिश्ते में थी, जिसने उससे शादी का वादा किया था। लेकिन बाद में उसने किसी और से सगाई कर ली। जब शिकायतकर्ता इस बारे में उससे मिलने गई, तो उसके परिवार के सदस्यों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और जातिसूचक गालियां दीं।
इसके बाद शिकायतकर्ता ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई, जिसमें निम्नलिखित आरोप शामिल थे:
✅ SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r) – जानबूझकर अपमान और धमकी
✅ SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(s) – जातिसूचक गाली देना
हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन आरोपों को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि घटना के समय कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था और यह पब्लिक व्यू में नहीं हुई थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला: मुख्य बिंदु
न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और रोहित जोशी की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि:
🔹 जातिगत अपमान या धमकी तभी अपराध मानी जाएगी जब यह सार्वजनिक दृश्य में हो।
🔹 घटना किसी सार्वजनिक स्थान पर होनी आवश्यक नहीं है, लेकिन इसे सार्वजनिक रूप से देखे जाने की आवश्यकता है।
🔹 किसी स्वतंत्र गवाह की मौजूदगी आवश्यक है, जिसने घटना को देखा हो।
📌 सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ: हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2020)
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 2020 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि:
📝 “SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत अपराध तभी सिद्ध होगा जब आरोपित जातिसूचक अपमान या धमकी सार्वजनिक दृश्य (Public View) में दे, और इसे किसी तीसरे व्यक्ति ने देखा हो।”
इस मामले में एफआईआर और चार्जशीट में ऐसा कोई गवाह नहीं था, जिसने इस घटना को सार्वजनिक रूप से होते हुए देखा हो, इसलिए अदालत ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि, IPC की अन्य धाराओं के तहत मामला जारी रहेगा।
SC/ST एक्ट में ‘पब्लिक व्यू’ का महत्व
यह पहली बार नहीं है जब अदालतों ने SC/ST एक्ट में ‘पब्लिक व्यू’ के मुद्दे पर विचार किया है।
📌 कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला (2023): शिवलिंगप्पा बी केरकलामट्टी बनाम कर्नाटक राज्य
- शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसे जातिसूचक गालियां देते हुए चेन से पीटा गया।
- लेकिन, कर्नाटक हाईकोर्ट ने केस खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह साबित नहीं हुआ कि घटना सार्वजनिक दृश्य में हुई थी।
📌 सुप्रीम कोर्ट का फैसला (दिसंबर 2024): ‘पब्लिक व्यू’ की व्याख्या
- सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में SC/ST एक्ट के तहत आरोप खारिज कर दिए, क्योंकि यह घटना किसी के घर के पिछवाड़े में हुई थी, जिसे अदालत ने सार्वजनिक दृश्य नहीं माना।
इन फैसलों से साफ है कि अदालतें अब SC/ST एक्ट के मामलों में ‘पब्लिक व्यू’ की शर्त को गंभीरता से लागू कर रही हैं।
फैसले के कानूनी प्रभाव
भविष्य के SC/ST मामलों के लिए प्रभाव:
✅ शिकायतकर्ता को अब और अधिक प्रमाण देने होंगे, जिससे साबित हो कि घटना सार्वजनिक रूप से देखी गई थी।
✅ आरोप सिद्ध करने के लिए स्वतंत्र गवाहों की जरूरत होगी।
✅ SC/ST एक्ट के तहत मामले, जहां पब्लिक व्यू सिद्ध नहीं होता, अदालत में टिकना मुश्किल होगा।
न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन के लिए प्रभाव:
✅ पुलिस को अब अधिक गहन जांच करनी होगी और गवाहों के बयान दर्ज करने होंगे।
✅ न्यायालय अब SC/ST एक्ट के मामलों में सख्ती से ‘पब्लिक व्यू’ की शर्त लागू करेंगे।
📌 बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला यह स्पष्ट करता है कि:
✅ SC/ST एक्ट के तहत अपराध तभी साबित होगा, जब जातिसूचक अपमान या धमकी सार्वजनिक दृश्य में दी गई हो।
✅ घरेलू झगड़े या निजी स्थान पर हुई घटनाओं को इस कानून के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
✅ यह फैसला सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट के पिछले निर्णयों के अनुरूप है।
जैसे-जैसे SC/ST एक्ट की कानूनी व्याख्या विकसित हो रही है, अदालतें जातिगत अत्याचारों और झूठे आरोपों के बीच संतुलन बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
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