बिहार। बिहार में अक्सर पाए जाने वाला बांस अब धीरे धीरे विलुप्त होने के कगार पर है। कारण, इससे किसानो को महज मानक आर्थिक लाभ से अधिक आज तक कुछ भी नही मिला। किंतु, आप जान कर चौक जायेंगे कि इसी बांस से ताइवान और ऑस्ट्रेलिया मालामाल हो रहा है।
कहतें हैं कि बिहारी बांस की अद्भुत कहानी है। बांस के उत्पादन करने के बाद भी हमारे किसान जहां कंगाली के कगार पर है। वही, ताईवान व ऑस्ट्रेलिया इसी से मालामाल हो रहा हैं। इतना ही नहीं, प्रसंस्करण के बाद इसी बांस का बना फाइबर बोर्ड का भारत के बाजारो में भी जबरदस्त खपत हो रहा है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि, पूसा के वानिकी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमेश कुमार झा कि माने तो यहां की बांस उत्तम कोटि का है। इसके गुणों को देखते हुए ताईवान के लोगों ने राज्य के वन विभाग से 1912 में बांस के पौधे मंगाकर अपने यहां लगाए। धीरे-धीरे इसके उत्पादन ने वहां व्यवसायिक रूप ले लिया। अब वह ऑस्ट्रेलिया को इसी से बना फाइबर बोर्ड चिप्स की सप्लाई कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया उस फाइबर बोर्ड का भारत में ऊंची कीमत पर निर्यात करता है।
बतातें चलें कि बिहार में तकरीबन 70 हजार हेक्टेयर में बांस की खेती होती है। जबकि, करीब चार लाख हेक्टेयर में इसके उत्पादन की संभावना है। राज्य के सिर्फ दो प्रतिशत वन क्षेत्र में ही बांस उपलब्ध है। राज्य में उत्तम कोटि के लाठी, हरोतिया, मकोर व भालन बांस प्रमुख रूप से उगाए जाते हैं। उत्तर बिहार में हरोतिया बांस 40 हजार हेक्टेयर में उगाया जाता है।
राज्य में एक्सपोर्ट क्वालिटी का माचिस, फाइबर बोर्ड, प्लाई बोर्ड, मध्यम घनत्व का ब्लॉक बोर्ड, शर्बत, अचार, ट्रे, थाली, प्लेट, चटाई, तिरपाल, कागज, पेन, फर्नीचर, कचरा पेटी, पर्दा, पतवार, नाव, तम्बाकू का पाइप, इथेनॉल व अगरबत्ती जैसे उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
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