लाली की शादी में ना जाएं तो ठीक रहेगा

लाली की शादी में लड्डू दीवाना। दरअसल, यह एक फिल्म का नाम है। कहतें हैं कि जब नाम ही चाशनी में घुला हुआ है तो फिल्म कैसी होगी? नाम पर मत जाइए और शादी की लड्डू खाने में पछताने का रिस्क होता है, इसको भी याद रखिए। क्योंकि, फिल्म देखने के बाद बरबस ही मुंह से निकल जाता है कि भाई, क्यों बनाई इस तरह की फिल्म? एंटरटेनमेंट के नाम पर इतना अत्याचार?
फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार है- एक गरीब बाप का बेटा एक लड़की से मिलता है जो देखने-सुनने में अमीर लगती है। कुछ समय बाद लड़के को पता लगता है कि वह तो गरीब है। एक दिन लड़की को भी पता लग ही जाता है कि लड़का भी गरीब ही है। फिर भी वह उसका साथ नहीं छोड़ती। दोनों का प्यार परवान चढ़ता है और लड़की प्रेग्नेंट हो जाती है।
इसी बीच लड़के का ध्यान प्यार से हटकर व्यापार पर आ जाता है और वह शादी से इंकार कर देता है। अब एंट्री होती है लड़के के गरीब मां-बाप की जो अपनी (न हो सकी) बहू को बेटी बनाकर अपने साथ ले जाते हैं और पैसे के पीछे पागल बेटे को हमेशा के लिए त्याग देते हैं। इसी बीच एंट्री होती है एक राजकुमार की जो प्रेग्नेंट लड़की से प्यार करने लगता है। आगे आप खुद देखिए…।
अक्षरा हसन फिल्म में बेशक खूबसूरत लगती हैं। मुख्य कलाकारों से बेहतर काम इस फिल्म में साइड कलाकारों ने किया है। फिर चाहे वह सौरभ शुक्ला हों, संजय मिश्रा हों या दर्शन जरीवाला। रवि किशन इस फिल्म के लिए राजी कैसे हो गए, यह समझ नहीं आता। कविता वर्मा के लुक और संवाद अदायगी से राखी सावंत की झलक मिलती है। गुरमीत चौधरी परदे पर अच्छे दिखते हैं। सुखविंदर सिंह की आवाज में फिल्म का टाइटल ट्रैक अच्छा है।

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