शिक्षा के मंदिर पर माफिया का कब्जा
एक जमाना था, जब शिक्षको के पैर की पूजा होती थी। गांव में शिक्षको की विशिष्ट पहचान व सम्मान हुआ करता था और विद्यालय को शिक्षा का मंदिर समझा जाता था। किंतु, वक्त के साथ इस सोच में भी तेजी से बदलाव हुआ है। आज इस सेक्टर पर माफिया का कब्जा हो गया है। फर्जीवाड़ा शिक्षको की बड़ी पहचान बन चुका है।
पढ़ाई की जगह मिड डे मील ने ले लिया है। पठन- पाठन के लिए विद्यालय में पुस्तक है या नही? इसकी चिंता छोड़, लोग यह खोजने में लगे हैं कि बच्चो के पोषाक की राशि का क्या हुआ? छात्रवृति में कितना लूट मचा है और शैक्षणिक भ्रमण की राशि को कौन गटक गया? दूसरी ओर विद्यालय में नौनिहालो का भविष्य संवारने वाले अधिकांश गुरुजी आज खुद के भविष्य को लेकर चिंता में है। एफआईआर में नाम आया कि नही? आया तो जमानत कैसे मिलेगी आदि?
ऐसे में शिक्षा व्यावस्था की हालत क्या हो गई है? आज किसी से छिपा नही है। इसका सर्वाधिक खामियाजा गांव के दलित, महादलित, पिछड़े व अति पिछड़ो को भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि, संपन्न लोगो के बच्चे तो प्राइवेट विद्यालयो में अपना भविष्य संवारने में लगें है।
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