परंपरा के मुताबिक अंतिम इच्छा का किया पालन
बिहार। जिन्दगी की जरुरतो के लिए चाहे जितनी लम्बी सफर करनी पड़े। वतन की मिट्टी में सुपुर्द ए खाक होने की इच्छा, भारतीय परंपरा की बिरासत मानी जाती है। खासकर उनके लिए जिनका पूरा जीवन परदेस में गुजर जाता हैं। रोहतास के डिहरी निवासी मुन्नू अंसारी के साथ ऐसा ही कुछ हुआ, जो इलाके में चर्चा का विषय बन चुका है।
दरअसल, डिहरी के मुन्नू अंसारी कनाडा में प्रोफेसर थे। कैंसर से उनकी मौत हो गई। अंतिम सांस लेने से पहले उन्होंने इच्छा जाहिर किया था कि उन्हें भारत में ही सुपुर्द-ए-खाक किया जाए। पति की अंतिम ख्वाहिश लिए कनाडा की कैरेन ने पति के शव को भारत लाने के लिए 21 दिनों की कानूनी प्रक्रिया को पार किया और 50 घंटे के लम्बी हवाई और कार यात्रा के बाद कनाडा से एम्सडर्म होते हुए दिल्ली और फिर दिल्ली से सड़क मार्ग के रास्ते एम्बुलेंस से डिहरी पहुंची।
कहतें हैं कि भारत में पत्नियों के अपने पति से प्रेम की कई कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। किंतु, 21वीं सदी में अपने पति की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए सात समंदर पार से बिहार आने वाली कैरेन के भारतीय जज्बे की जितनी भी तारीफ की जाए, वह उतना ही कम है। कैरेन कहती हैं कि अब वह अपनी बाकी जिंदगी भारत में ही बिताएंगी। इतना ही नही बल्कि कैरेन ने मरने के बाद पति के बगल में ही सुपुर्द-ए-खाक होने की अपनी अंतिम इच्छा जाहिर करके प्रेम के संबंध को एक नए आयाम से परिभाषित भी कर दिया है।
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